अब और सुकमा नहीं
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आज के अतिथि -ब्लॉगर :
भारत के सबसे ताकतवर गुंडा-गिरोह ने कल छत्तीसगढ़ के सुकमा से अपने अभियान के ''दूसरे चरण'' में प्रवेश किया है................
.................कामरेड लेनिन ने अपने अनुयायियों से कहा था - '' दो कदम आगे : एक कदम पीछे !''
.................अभी तक सिर्फ पुलिस पर हमला करते हुए राजनीतिज्ञों पर हमला नहीं कर के, ये लोग '' एक कदम पीछे '' की नीति का पालन कर रहे थे ............ किन्तु , अब इनकी दृष्टि में , ऐसी स्थिति आ गयी है कि '' एक कदम पीछे '' की नीति से आगे बढ़ा जा सके............... और इस घटना की तारीख और स्वरुप पर विचार किया जाना चाहिए........... टेंट लगाना ,, टेंट हटाना ,, फिर आना ,, और फिर ,, आप सोच वालो के लिए ये अकल्पित होना.............. सबकुछ अनहोनी नहीं है..........कार्य-कारण सम्बन्ध है इसमें ............ जो माओवाद को जानते समझते हैं उन्हें ये कारण दिखाई दे सकता है................
............मिथ्या-माओवाद और मिथ्या-लेनिनवाद के अराजक विस्तार को रोकने के लिए , रोकने वालों को पहले माओवाद और लेनिनवाद का अध्ययन करना चाहिए ...............
जिसे जान न पाए उसे रोक क्या पाएंगे....
................ जो लोग भ्रम में थे कि ये लोग सिर्फ अल्पकालिक रूप से और सिर्फ पुलिस को कायरों की तरह हमले का शिकार बनाते रहेगे ---------- वे भ्रम में थे ---------- यह जगदलपुर ने साबित कर दिया है.............
.............. यह घटना ओसामा बिन लादेन द्वारा ट्विन टावर ध्वस्त किये जाने की घटना के रूप में लिया जाना चाहिए ------------
............अर्थात '' अब और सुकमा नहीं ...............''
...............क्योकि यह किसी खास पार्टी के लोगो पर हमला नहीं है .....
...............यह हमला '' एक कदम पीछे '' की नीति से आगे बढ़ने का है और अब ये कदम किसी भी पार्टी की मीटिंग की ओर बढ़ सकता हैं........
.................. तो अब सुरक्षित मीटिंग कारने के लिए भ्रष्टाचार रोकते हुए दिखाई देना होगा ................. पुलिस को सम्मान के साथ सशक्त बनाना होगा.............आम लोगो को यह महसूस करना होगा कि उनकी संवैधानिक व्यवस्था उनके साथ खड़ी है...............उन्हें किसी जन-अदालत में जाने की ज़रूरत नहीं..........
............कुछ लोगो ने इन्टरनेट पर इस घटना के बारे में अपने अपने विचार रखे हैं जिनमे मेरे एक सम्मानित मित्र भी हैं जिन्हें मैं मौलिक चिन्तक मानता हूँ ..................... उन्होंने कहा है कि ये लोग आम जनता को हमले का शिकार नहीं बनाते ................ यह बात सत्य नहीं है ....... अगर हम इस हमले को भी विश्लेषित करे तो यहाँ जो लोग मारे गए उनके व्यक्तिगत अपराधों की सूची देकर और उन्हें अपना पक्ष रखने का मौक़ा देने के बाद हत्या करने का निर्णय नहीं हुआ ...................
.......यदि वे ऐसा करने के लिए तैयार भी हों और ऐसा करने का अधिकार यदि उन्हें दे भी दिया जाय तो फिर इस देश में हज़ारो गिरोह बन जायेगे और वही करेगे जो ये कर रहे हैं.................तो क्या देश में जंगल-राज लागू कर दिया जाय कि जो जिसे अच्छा लगे वह, वही करने लगे..............
.............किसी को भी विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही उसकी प्राणिक या दैहिक स्वतन्त्रता से वंचित किया जाना चाहिए -- क्योकि यह किसी भी व्यक्ति के स्वयं के निर्दोष होने के सम्बन्ध में अपना पक्ष रखने के मूल मानवीय अधिकार से सम्बंधित विंदु है.....मूल मानव अधिकारों के इसी विंदु को भारत के संविधान ने स्वीकृत किया ........यदि ऐसा नहीं होगा तो व्यक्ति और व्यक्तियों का गिरोह किसी को भी मार डालने का निर्णय करेगा और उनके निर्णय का शिकार कोई भी हो सकता है...........झारखंड , छत्तीसगढ़ और देश के अन्य राज्यों में सक्रिय ये लोग न्यूनतम १० हज़ार करोड़ की अनुमानित राशि '' लेवी '' के रूप में ले रहे और यह राशि '' गरीबी की रेखा से नीचे रह रहे नागरिकों के विकास की योजनाओं '' के लिए आवंटित राशि से भ्रष्ट या कमजोर अधिकारी और ठेकेदार दिया करते हैं.....क्या इस वसूली गयी लेवी का लेखा-जोखा इन्होने जनता को कभी दिया है ?
...............अरे भाई, हमारी व्यवस्था लाख भ्रष्ट हो मगर यहाँ महालेखाकार हैं जो लेखा-जोखा लेते है और आम लोगो को बताते भी हैं........ इसलिए वास्तव में ये एक सशक्त-सशस्त्र गुंडा-गिरोह के लोग हैं जो जंगल राज की स्थापना के लिए प्रयासशील हैं जो अब इक्कीसवी शताब्दी के इस महाजागारण-युग में असंभव है .............
................ओसामा बिन लादेन नहीं बच सका तो ये और इनके गिरोह के लोग बस एक या दो और ऐसी घटनाएं ही कर पायेगे..
इस पोस्ट के साथ मैं दंतेवाडा में ६ अप्रैल २०१० को शहीद हुए जवानो की स्मृति में जो ब्लॉग में लिखा था उसे भी संयुक्त कर रहा हूँ , इसे भी आप ज़रूर पढ़ें ,, क्योकि इसमें कुच्छ ऐसे प्रश्न हैं जनका उत्तर इन मिथ्या-माओवादियों और उनके प्रबंधक-बुद्धिजीवियों के पास नहीं है........वह लेख इस प्रकार था :
''.............माओवाद के नाम पर अब तक का सबसे बड़ा पाखण्ड, भारत मे सक्रिय सबसे बड़े अपराधी-गिरोह ने आज दंतेवाडा मे किया है.खुद को माओवादी , नक्सलवादी लेनिनवादी कहने वाले इन पाखंडियों से मैंने अक्सर अपनी फील्ड पोस्टिंग के समय दास कैपिटल की शास्त्रीय भाषा मे शास्त्रार्थ किया है और कुछ प्रश्न पूछे हैं जो आज इस ब्लॉग के माध्यम से फिर पूछ रहा हूँ ..
ये प्रश्न इनके पापों का औचित्य बताने वाली श्रीमती अरुंधती राय और उन जैसे लोगो से भी पूछे जा रहे हैं जो सर्वहारा के इन सबसे बड़े और खतरनाक ऐतिहासिक दुश्मनों के भय से इनका बौद्धिक समर्थन करते हैं --
१.क्या १९४९ मे चीनी सेना के सहयोग से हुई माओवादी सशस्त्र क्रान्ति के बाद , दुनिया के किसी बड़े देश मे सशस्त्र क्रान्ति हुई है ?? यदि नहीं तो फिर यह असंभव स्वप्न दिखाकर सर्वहारा का बौद्धिक शोषण क्यों??
२.क्या आज के प्रबल वैज्ञानिक युग मे विश्व के राष्ट्रों के पास जो शस्त्र ( परमाणु बम जैसे महाविनाशकारी शस्त्र ) उपलब्ध है वैसे शस्त्र इन कथित माओवादियों के पास कभी भी हो सकते हैं ??
३.यदि नहीं तो क्या इस युग मे सशस्त्र क्रान्ति का स्वप्न दिखाकर युवाओं को एक मिथ्या और कभी न घटित हो सकने वाले सिद्धांत का अनुयायी बनाकर उनकी नियति के रूप मे उनका विनाश लिख देना मार्क्सवाद, लेनिनवाद , माओवाद, की ह्त्या नहीं है ??
४.जिस क्षेत्र मे नक्सलवादी अपनी ताकत के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे है क्या उस क्षेत्र मे वे सर्वहारा के लिए चलाई जा रही विकास योजनाओं से ३०% या उससे भी अधिक लेवी नहीं ले रहे ?? यदि ले रहे तो क्या यह उसी सर्वहारा का शोषण और उनका मांस भक्षण नहीं जिस सर्वहारा की मुक्ति की बात वे सशस्त्र क्रान्ति के द्वारा करने का झूठा वादा और दावा कर रहे.??
ये प्रश्न और इनके उत्तर के रूप मे प्रश्नित-समूह का शाश्वत मौन यह बताता है कि इस देश मे मानसिक रूप से असंतुलित और विकृत लोगो का एक ताकतवर समूह इक्कीसवीं शताब्दी को समय-पूर्व ही पीछे छोड़ देने की ताकत रखने वाले भारत को, उस प्रस्तरयुगीन कालखंड मे ले जाना चाहता है जब जंगल का क़ानून मानवता के बौद्धिक सौन्दर्य को विकसित ही नहीं होने दे रहा था..
हमारे देश की संवैधानिक-व्यवस्था, जिन एजेंसियों के माध्यम से देश के समस्त नागरिको को आर्थिक न्याय दिलाना चाहती है वह भ्रष्ट हो चुकी है - यह सत्य है ..
यह सत्य है कि जिस पूर्व मध्यप्रदेश के दंतेवाडा मे इन पाखंडियो ने नरसंहार किया है उसी प्रदेश के एक आई ए एस अधिकारी और उसकी अधिकारी पत्नी के पास से कुछ ही दिन पूर्व आम जनता से लूटे हुए करोडो रुपये बरामद किये गए ..
यह सत्य है कि पूरे देश मे सरकारी अधिकारी जनता के पैसो की लूट के आरोपित हो रहे हैं ..
तो क्या इसका समाधान वही है जो दंतेवाडा मे या और जगहों पर इस अपराधी गिरोह द्वारा किया जा रहा है ..और क्या गारंटी है कि इन पाखंडियो के शाशन मे इनके अधिकारी भ्रष्टाचार नहीं करेगे ..
क्या अरुंधती राय या अन्य कोई भी माओवादी नेता यह बतायेगे कि नक्सलवादियो ने पिछले पांच वर्षों मे कितनी लेवी वसूली और उसका खर्च कैसे किया ??
क्या ये लोग अपने प्रभाव क्षेत्र के लोगो को अपनी आडिट रिपोर्ट देते हैं ? यदि ऐसा नहीं है तो ये लोग उन जंगली आदमखोर जानवरों से भी खतरनाक है जो अपने ही समूह के सदस्यों का मांस खाकर तृप्त होते है क्योकि ये मानवभक्षण का पाप जान बूझ कर कर रहे हैं .
यदि क्रान्ति करना है तो इस देश के नौजवानों को संगठित और शिक्षित करके उन्हें आई ए एस , आई पी एस जैसे महत्वपूर्ण सरकारी पदों पर बैठकर ईमानदारी से आम जनता की सेवा करने का प्रशिक्षण दो ..
इन ताकतवर सेवाओं मे रह कर रिश्वत न लेकर दिखाओ तब क्रान्ति जैसे पवित्र शब्द का उच्चारण करो ..
मैंने पलामू, चतरा , गया जैसे नक्सलवाद प्रभावित जिलों के एस पी और डी आई जी के रूप मे इन पाखंडी माओवादियों के मिथ्याचार का पर्दाफ़ाश किया था और अब भी कर रहा हूँ.. मैंने पैम्फलेट प्रकाशित कराकर इन्हें बौद्धिक और व्यवहारिक स्तर पर कमज़ोर, पाखंडी और मिथ्याचारी साबित किया था..वह पैफ्लेट आप भी देखें..
अतिथि -ब्लॉगर :
कृपया इसे भी देखें :
-- Bihar Bhakti Aandolan Trust
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