छत्तीसगढ़ में नक्सलियों द्वारा डी एम् का अपहरण किये जाने की घटना नक्सलवाद-निवारण की पूरी रणनीति के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता बता रही है.आप इस प्रकाशित समाचार को ज़रूर पढ़ें और अपने विचार दे.१९९३ में मैं चतरा का एस पी था - .. जिले में नक्सलवाद के मुख्यालय प्रतापपुर के एक गाँव नारायणपुर में नक्सलवादियों ने एक स्कूल भवन ध्वस्त कर दिया था.मैं गया वहाँ.आमलोगों की विशाल सभा में उन्हें बताया कि ये नक्सलवादी स्कूल भवन इसलिए तोड रहे हैं जिससे आपके बच्चे पढ़-लिख कर डी एम्, एस पी, बी डी ओ , थानाध्यक्ष न बन सकें और इनके साथ जंगलों में घूम कर इनकी बंदूके ढोते रहें.मैंने कहा कि मैं चाहता हूँ कि आज से १० साल बाद आपके गाँव का बच्चा ही यहाँ के डी एम् , एस पी के रूप में पदस्थापित हो..नक्सलवादी इस क्षेत्र से २५ लाख रुपये लेवी लेते हैं लेकिन आपके बच्चों के लिए इन्होने एक भी स्कूल भवन नहीं बनाया ..तो ये आपके दुश्मन हैं ..आप इनसे लेवी का हिसाब मांगिये ..
इसका प्रभाव पड़ा और मेरे पहले चतरा में अनेक पुलिस अधिकारी-कर्मीं, नक्सलवादी हमले में शहीद हुए थे किन्तु मेरे कार्यकाल में पुलिस पर ये लोग हमला नहीं कर सके..कारण -- उस क्षेत्र में किसी भी स्थान पर जाने के पूर्व मैं यह मानकर चलता था कि मेरे काफिले पर हमला होगा और तब उस हमले को पूरी तरह नाकाम करने की रण-नीति के साथ वह यात्रा की जाती थी..कुंदा और प्रतापपुर में बी एस एफ और जिला पुलिस की गाड़ी को भी इन लोगो ने मेरे पहले लैंड माइन से ध्वस्त किया था किन्तु मेरे समय में ये सब नहीं हो पाया .. उसका एक कारण ईश्वर की कृपा तो थी ही और उस कृपा के कारण मेरे द्वारा बरती गई अतिशय सावधानी..
अरविंद पाण्डेय
2 comments:
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