क्यों नहीं कहता कोई हमको - चले आओ यहाँ ..
हम तुम्हें अपनी ज़मीं पर दे रहे है रोज़गार..
अब तो खुद अपने यहाँ पर कारखाने चल रहे..
अब न रोजी की कमी होगी कभीअपने यहाँ ..
हम तुम्हें अपनी ज़मीं पर दे रहे है रोज़गार..
अब तो खुद अपने यहाँ पर कारखाने चल रहे..
अब न रोजी की कमी होगी कभीअपने यहाँ ..
मुंबई में राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को गंभीर क्षति पहुचाने वाले वक्तव्यों और सांस्कृतिक अभियान के प्रति पूरे देश में
व्यापक प्रतिक्रया और अनुक्रिया हुई है । सारा देश, इन घटनाओं से हतप्रभ और मर्माहत है । यह मामला सीधे तौर पर उत्तर भारतीयों और मराठी - भाइयो के बीच तनाव को जन्म दे रहा है ..ऐसी स्थिति में वहां के माफिया ,उत्तर भारतीय नौजवानों का दुरुपयोग, अव्यवस्था फैला कर, अपने हित-साधन के लिए भी, कर सकते हैं ।
किन्तु , इस समस्या के एक अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू को नज़र अंदाज़ किया जा रहा है .. तथ्य यह है कि अब तक मुंबई सारे देश का भार वहन करती आ रही थी ,, उन्हें रोज़गार देती आ रही थी. मगर अब मुम्बई को अपने भूमिपुत्रों को ही रोज़गार देने में मशक्कत करनी पड़ रही है ...
इस बीच आंध्र , कर्नाटक तमिलनाडु जैसे राज्यों ने मुंबई की समस्या को समझा और अपने यहाँ खूब काम किया ..ऐसा संसाधन पैदा किया कि कोई वहां से बाहर काम मागने काम करने के के लिए न जाय.. देश की फिल्म - राजधानी मुंबई में उपलब्ध फिल्म सिटी से ही नहीं एशिया में सबसे बड़ी फिल्म-सिटी -- रामोजी फिल्म सिटी -- आंध्र ने बनायी और मुंबई के मेगा सितारों को वहा जाकर शूटिंग करनी पड़ती है.. उन्होंने सांकृतिक विकास के सन्दर्भ में मुंबई पर अपनी निर्भरता ख़त्म कर ली..
मगर उत्तर भारत का सांस्कृतिक विकास उस रीति से लोग नहीं कर पाए न उनके पास आज भी ऐसा करने का संकल्प या दृष्टि है .. वे चाहते है कि उनके लोग मुंबई या दूसरे राज्यों में जाकर वहां रोजी कमाने के लिए अपमान सहते रहे इस बात की और उनका ध्यान ही नहीं है कि दूसरे राज्यों में भी जनसंख्या बढ़ी है और अब वहां भी हर तरह के काम करने के लिए वहीं के लोग तैयार हैं..
उत्तर प्रदेश में नोएडा फिल्म सिटी है मगर उत्तर प्रदेश के सारे कलाकार मुंबई में है . बिहार में तो अभी तक शूटिंग स्टूडियो भी नहीं बना पाए लोग कि वहां किसी फिल्म की इनडोर शूटिंग हो सके ..
उत्तर भारत के सांस्कृतिक और कलात्मक विकास के लिए यह ज़रूरी था कि वहां औसत आदमी की क्रय शक्ति बढाने के उपाय किये जाते ..रोज़गार गारंटी की सभी योजनायें, जन-कल्याण कारी सभी योजनायें ईमानदारी से लागू की जाती .. मगर ये न हो सका और बिहार, उत्तर प्रदेश के लोग न चाहते हुए भी मुंबई और दूसरी जगहों में जाते हैं ..अपमान सह कर भी वहां रहते है और किसी तरह मनुष्य की तरह ज़िंदगी बिताने की भरसक कोशिश करते हैं..
हाल ही में योजना आयोग ने कहा है कि उत्तर प्रदेश और बिहार , नरेगा -- राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना लागू करने में सबसे पीछे है.. तो इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है ??
सरकार की घोषित नीति के खिलाफ काम करने वाले निश्चिन्त सरकारी सेवकों को इस बहस और बहुपक्षीय विवाद से कोई मतलब नहीं है .. वे तो इस विवाद का रस लेते हुए अपने वेतन और प्रोन्नति के लिए निश्चिन्त है क्योकि उनसे कोई पूछने वाला नहीं है कि आपने नरेगा को सही तरीके से लागू न करके राज्य की अर्थव्यवस्था को क्षति क्यों पहुचाई ?? जब कि सरकारी नीतियों को शत प्रतिशत क्रियान्वित न करने के लिए मुख्य रूप से सरकारी सेवक ही ज़िम्मेदार हैं..
बिहार और उत्तर प्रदेश में यह स्थिति इसलिए पैदा हुई है क्योंकि वहा के ज़्यादातर अफसरों को आम आदमी की न तो चिंता है न ही वे सरकार की नीतियों को सही तरीके से लागू करने के आदी ही हैं ..क्योंकि किसी भी अफसर से आजतक शायद ही यह पूछा गया हो कि आपके काम न करने के कारण सैकड़ो करोड़ रुपये खर्च नहीं हुए ..उन्हें वापस करना पडा और राज्य की अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ..
मेरा मानना है कि यह समस्या महाराष्ट्र बनाम बिहार-उत्तरप्रदेश की नहीं है क्योंकि सम्पूर्ण देश जानता है कि जब राष्ट्रीय - स्वाभिमान के प्रतीकों को नमन करने का अवसर आता है तब छत्रपति महाराज शिवा जी का नाम सर्वप्रथम लेने की इच्छा होती है । हमारे देश में हर माता, प्रातः स्मरणीया माता जीजा बाई बनने की महत्वाकांक्षा रखती है । जब गीता के रहस्यों का बोध प्राप्त करना होता है तब हम भारत के लोग, संत ज्ञानेश्वर और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की ज्ञानेश्वरी और गीता- रहस्य की शरण लेते हैं । और इसीलिये हम , मराठा प्रदेश को राष्ट्र ही नही महाराष्ट्र कहते रहे हैं । आज भी सारा देश और विश्व भी , जब शान्ति -कामी होता है तब वह श्री कृष्ण की वंशी की अवतार लता मंगेशकर के स्वर की शरण लेता है । इसलिए , राज ठाकरे और उनके अभियान का उत्तरह में स्थिर बुद्धि से देना होगा अन्यथा हम इनलोगों केबिछाए जाल में फंस जायेंगे ।
इस स्थिति के " निष्क्रिय उत्तरदायी " वे हैं जिनकी अकर्मण्यता के कारण , हउत्तर भारत के लोग, कारखानों में काम करने , ड्राइवर, सुरक्षा - गार्ड , चपरासी , आदि की नौकरी करने मुंबई और दूसरे राज्यों शहरों में जाने को विवश होते हैं। सभी जानते हैं कि राष्ट्रीय ग्रामीणरोज़गार गारंटी अधिनियम अगर शतप्रतिशत ईमानदारी के साथ उत्तर भारत में लागू करा दिया जाय तब मुम्बई सहित देश के अन्य औद्योगिक राज्यों में मेहनतकशों की कमी हो जायेगी और वे हमारे लोगों को को अधिक पैसा और सम्मान के साथ काम के लिए आमंत्रित करेंगे ।
आज भी भोजपुरी फ़िल्म उद्योग पटना में स्थानांतरित नही हो पाया । प्रकाश झा , मनोज तिवारी आदि नेबिहारी- भाषा , विषयवस्तु , संस्कृति , संगीत से किन उपलब्धियों को हासिल किया - यह सब जानते हैं । किंतु , इनमे से किसी ने बिहार में शूटिंग स्टूडियोबनाने की कोई पहल नही की ।
इसलिए नरेगा और इस जैसी अन्य क्रय-शक्ति वर्धक योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार लोगो से हम अपील करते हैं कि वे बिहार और उत्तर प्रदेश वहां के लोगो के लिए रोज़गार की गारंटी दे जिससे क्षेत्रीयतावादी शक्तियों को पता लग सके कि बिहार उत्तर प्रदेश के लोग तैयार है उन्हें गांधीवादी तरीके से जवाब देने के लिए । यदि ऐसा नहीं हुआ तो हमें समझना होगाकि हम अपनो के ही हमेशा कारण हारते रहेंगे ..
इसलिए नरेगा और इस जैसी अन्य क्रय-शक्ति वर्धक योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार लोगो से हम अपील करते हैं कि वे बिहार और उत्तर प्रदेश वहां के लोगो के लिए रोज़गार की गारंटी दे जिससे क्षेत्रीयतावादी शक्तियों को पता लग सके कि बिहार उत्तर प्रदेश के लोग तैयार है उन्हें गांधीवादी तरीके से जवाब देने के लिए । यदि ऐसा नहीं हुआ तो हमें समझना होगाकि हम अपनो के ही हमेशा कारण हारते रहेंगे ..
-- अरविंद पाण्डेय
9 comments:
मैं एक छोटा सा उदाहरण देता हूँ, मैंने अपने गाँव में एक राईस मिल खोल रखा है, जिसके प्रोपराईटर तो मेरे चाचा हैं, पर यह खुला था मेरे ही व्यवसायी सोच के चलते, खादी ग्रामोद्योग आयोग के ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम के अंतर्गत। हमारे यहाँ से बहुत से लोग सूरत काम करने जाते थे, अभी संभवतः एक भी नहीं। लगभग बीस ग्रामीणों को रोजगार मिला हुआ है, जो अपने गाँव में रहकर प्रतिमाह तीन-चार हजार रुपए कमा लेते हैं, ये वही ग्रामीण मजदूर हैं, जो सूरत जाकर कमाते थे। पर, सरकार लघु उद्योगों को क्या सुविधाएँ दे रही है? बिजली है ही नहीं, अनाज भंडारण हेतु बिहार में गोदाम का घोर अभाव है, जिससे न तो किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उनके उपज की खरीद हो पाती है और न ही राईस मिलर्स से लेवी राईस। तुलना पंजाब हरियाणा से करते हैं तो आधारभूत संरचनाओं का भी तो विकास उनके जैसा कीजिए ना। मैंने देखा है, पंजाब की लगभग सभी नहरें पक्की हैं। वहाँ रास्ता चलते प्रखंड स्तर के शहर में पाँच-पाँच लाख क्विंटल क्षमता के गोदाम दिख जाते हैं और हमारे यहाँ पाँच हजार क्विंटल क्षमता के गोदाम भी दुर्लभ हैं। सरकार प्रतिदिन समाचार पत्रों में छपवाती है कि किसानों को बिचौलियों के हाथ पड़ने की जरुरत नहीं, वे अपने उपज को नजदीकी क्रय-केन्द्र पर ही ले जाकर बेचें। अब सरकार के पास जो संसाधन हैं, उसमें तो पाँच प्रतिशत किसान भी अपनी उपज नहीं बेच पायेंगे, और बिचौलिया-बिचौलिया हल्ला कर अपनी कमी छुपायेंगे। उद्योग केवल उद्योगपतियों को बुलाने से और सम्मेलन करवाने से तो नहीं लगनेवाला। यहाँ तो ईमानदारी से काम करनेवाले को पग-पग पर प्रताड़ित होना पड़ता है। छोटे से काम के लिए भी बड़े पापड़ बेलने पड़ते हैं। महाशय, आप सहज अनुमान लगा सकते हैं कि बिहार सरकार किसी जिले को आवंटित चावल की ढुलाई पर तो करोड़ो रुपए व्यय कर देती है, पर स्थायी गोदाम का निर्माण नहीं करती है। अगर स्थानीय खपत के अनुसार भंडारण की व्यवस्था कर दी जाती, तो परिवहन शुल्क के मद में सरकार को काफी बचत भी होती। मैं चावल, अनाज, भंडारण इत्यादि का चर्चा इसलिए किया कि मैंने इसके बारे में खुद अनुभव किया है। अभी वित्तीय वर्ष २००९-१० में प्रधानमंत्री ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम अंतर्गत औरंगाबाद जिला में चयनित १०८ अभ्यर्थियों में से बैंकों द्वारा मात्र सात अभ्यर्थियों को ऋण दिया गया है जबकि ३१ मार्च आने में अब बहुत दिन नहीं है। बिहार सरकार को इन सब बातों की भी तो खबर रखनी चाहिए।
आपकी बाते शत प्रतिशत सही है ! काश इस तरह के विचार अन्य प्रशाशक एवं उच्चा सिंहासन पर बैठे लोग रखते तो आज उत्तर प्रदेश और बिहार है ये स्थिति नहीं रहती ! किसी समय ये राज्य अत्यंत सम्रिध्शाली थे और इन्होने ही भारतीय संस्कृति में आगे लेजाने का काम किया ! लेकिन हमने भविष्य है तैयारिया नहीं की और अपने गलतियों से सबक नहीं लिया ! विद्माबना तो ये है की अधिकांश भारतीय प्रशाशनिक सेवा में इन्ही राज्यों के लोग है फिर भी हम अत्यंत पिछड़े है !
" हमे अपनों ने ही ने लूटा गैरों में कहा दम था , हमारी कश्ती वह डूबी जहा पानी कम था "
रोज़गार गारंटी की सभी योजनायें, जन-कल्याण कारी सभी योजनायें , में बहुत ही मनमानी के साथ जो घोटाला किया जा रहा उसपर मैं विस्तृत टिपण्णी लिखूंगा सर.
आमोद कुमार
बिहारी बनाम महाराष्ट्रियन के विवाद का एक नया पहलू सामने रखा है आपने ....यदि अपने प्रदेश में ही रोजगार के भरपूर साधन उपलब्ध करा दिए जाए तो अपना गाँव शहर छोड़ कर जाना कौन चाहता होगा ...समस्या और उसके समाधान पर व्यापक और विहंगम दृष्टि डाली है जो प्रत्येग प्रदेश की हो सकती है ...
दूसरा पहलू भी है कि अपने ही देश में लोगों को परदेसी क्यों साबित किया जा रहा है ...उन्हें आजादी होनी चाहिए कि वे देश के किस हिस्से में रहना चाहते हैं ....
आभार ...!!
मुंबई हमारे भारत वर्ष की शान है , जहाँ तक कुछ लोग जो कुछ भी बोल रहे वे देशद्रोही है | इस लिए देश द्रोहियों की बात करनी ही बेकार है |
अब बिहार में इतनी सारी फैक्ट्री मजदूरों के नहीं रहने से और सरकार के लापरवाही से नहीं चल रही है |
भारत सरकार ने जितने भी जन कल्याणकारी योजना दे रखी है , उसमे चारो तरफ लूट मचा हुआ है , उस पर किसी का ध्यान नहीं है ,
अब कहते है जॉब कार्ड , जाकर आप गाँव में देखेंगे तब पता चलेगा तो पता चलेगा की सारा जॉब कार्ड पंचायत सेवक और मुखिया जी अपने पास रखे हुए है , पंचायती राज की कोई मोनिटरिंग करनेवाला नहीं है |
बी पी एल , सूचि में कोई ठीक से सुधार करने के लिए तैयार नहीं है ,
नरेगा में तो पूछिए मत घोर घोटाला हो रहा है , लेकिन यहाँ फुरसत नहीं है किसी को इसपर देखने की , Because of बिलरनी ?????
बिहार में इतने सारे सुंदर जगह है , कही भी एक सुंदर फिल्मसिटी बनाई जा सकती है , ताकि फिल्मो में काम करने वाले व्यक्ति यहाँ सुंदर फिल्म बना सके |
बिहार का सांस्कृतिक विकास उस रीति से लोग नहीं कर पाए न, उसके पीछे सिर्फ एक कारण है की ऐसा करने का संकल्प नहीं है | यहाँ अभी तक शूटिंग स्टूडियो नहीं है | अगर स्टूडियो रहेगा तो यहाँ इतनी सारी एतहासिक जगहे है जहाँ फिल्म बनाने के लिए भारत के अलावा दुसरे देश से भी लोग आते है और अच्छी अच्छी फिल्मे बनाते है, नालंदा विश्व विधालय , राजगीर, पटना का शहीद अस्मारक जहाँ आज़ादी का तिरंगा झंडा हमारे पूर्वजो ने मर के भी लहरा दिया था, बुध भगवान की वो प्राचीन गौरवशाली इतिहास और भी बहुत कुछ सब लोग जानते है |
सब तो तो सब हमारे बिहार के कलाकार भाई भी बिहार के थूका फजीहत करने में कोई कोर क़सर नहीं छोड़ी है , तुरंत सुरु हो जाते है " हथवा में शोभेवाली जुड़ा में .................., जरूरत है इन्हें तिरस्कार करने की |
बिहार और उत्तर प्रदेश में यह स्थिति इसलिए पैदा हुई है क्योंकि वहा के ज़्यादातर अफसरों और नेताओ को आम आदमी की न तो चिंता है न ही वे सरकार की नीतियों को सही तरीके से लागू करने के आदी ही हैं ..क्योंकि किसी भी अफसर से आजतक शायद ही यह पूछा गया हो कि आपके काम न करने के कारण सैकड़ो करोड़ रुपये खर्च नहीं हुए ..उन्हें वापस करना पडा और राज्य की अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ.. क्योंकि सरकार मस्त है , जनता त्रस्त है , नरेगा और इस जैसी अन्य क्रय-शक्ति वर्धक योजनाओं की की जाँच कराई जाये तब देखिएगा कितनी बड़ी घोटालो का पर्दाफास जायेगा |
आपकी सारी कही हुई बाते इतनी सत्य है की मैं अपने आपको रोक ना सका और जो नजर आया लिख दिया .
अगर आपकी कही हुई सारी बाते कार्यवान्वित हो जायेगा तो ............
........ ना जुल्म ना जालिम का अधिकार रहेगा , बिहार में तो सिर्फ रोजगार ही रोजगार रहेगा ......
सही बात है | किन्तु, ऐसा कहने के लिए आत्म-बल और इच्छा-शक्ति की जरुरत पड़ेगी |जो हमारे देश के राजनेताओं में नहीं पाई जाती है |यहाँ के नेता-गण तो विभिन्न समस्याओं के आगे सिर्फ घुटना टेकना ही जानते हैं |ऐसे में आशा किससे की जाय ?
भारत एक विशाल देश है | इस देश में बिभिन भाषा-संस्कृति के लोग रहते है |यही चीज इस देश को अन्य देश से अलग पहचान दिलाता है | बिगत कुछ वर्षो से असमाजिक तत्वों द्वारा इसी पहचान को खतम करने के कोशिश की जा रही है | किसी भी भाषा संस्कृति को और विकसित होने का अवसर मिलना जरूरी है |और इससे जुड़े लोगो को इसे अपनी पहचान के रूप में प्रकट करना चाहिए | सदभाव रखते हुए अन्य भाषा-संस्कृति के लोगो के साथ मिलजुल कर एव एक दुसरे के प्रति सम्मान करने की मानसिकता बनानी चाहिए | एक दुसरे को निचा दिखाने तथा अतिक्रमण करने की मानसिकता को छोड़ कर एक दुसरे की राह में आने वाली बाधा को दूर करते हुए विकास के नए आयाम बनाना चाहिए | और आज के इस समय में भाषा-संस्कृति का अनोखा संगम बनाने के जरुरत है |जिसमे भेद भाव भुला कर हर कोई डुबकी लगा सके |
पंकज
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