Bihar Bhakti Andolan

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Bihar Bhakti Andolan with the victims of Koshi Disaster in 2008

बिहार-भक्ति क्या है ?

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Sunday, December 23, 2007

हथियार चोरी कांड : दुबारा पर्यवेक्षण शुरू

मुजफ्फरपुर, कार्यालय संवाददाता : डीआईजी ने बीएमपी हथियार चोरी कांड का अनुसंधान आरंभ कर दिया है। इस क्रम में कई वरीय अधिकारियों के पोल खुलने की उम्मीद की जा रही है। अनुसंधान की कार्यवाही से हड़कंप मच गया है। राजधानी एक्सप्रेस का पर्यवेक्षण करने वाले डीआईजी के रुख से पुलिस मुख्यालय तक सहमा हुआ है। ज्ञात हो कि 27 अगस्त 06 को मिठनपुरा थाना में बीएमपी-6 के कोत से चार ए.के.-47, एक इंसास रायफल चोरी की प्राथमिकी दर्ज करायी गयी थी। पर्यवेक्षण के क्रम में एसपी रत्न संजय ने लियाकत अली, शाह आलम शब्बू, हवलदार इंद्रदेव चौधरी एवं आरक्षी अमीत कुमार को अप्राथमिक अभियुक्त बनाया था। अनुसंधानक ने एसपी के मौखिक आदेश पर 12 मई 07 को लियाकत अली एवं शाह आलम शब्बू को फरार दिखते हुए दो अन्य अभियुक्तों के खिलाफ न्यायालय में आरोप पत्र समर्पित किया। गौरतलब है कि बीएमपी के तत्कालीन एडीजी शफी आलम ने 23 मार्च को ज्ञापांक 673 द्वारा कांड का पुन: अनुसंधान तिरहुत क्षेत्र के डीआईजी से कराने का अनुरोध डीजीपी से किया था। इस आलोक में आईजी मुख्यालय (विधि-व्यवस्था) ए.सी. वर्मा ने 11 अप्रैल को ही ज्ञापांक 492 द्वारा कांड के पर्यवेक्षण का निर्देश तिरहुत क्षेत्र के डीआईजी को दिया। 20 अप्रैल को डीआईजी ने लिखा कि मामला न्यायालय में विचाराधीन है। इसलिए पर्यवेक्षण करना समीचीन प्रतीत नहीं होता है। डीआईजी के पत्र के आलोक में आईजी विधि-व्यवस्था ने 13 मई को हथियारों की बरामदगी का निर्देश एसपी को दिया। इधर, डीआईजी श्री पांडेय ने कांड के पुन: अनुसंधान आरंभ करने के आदेश पत्र में स्पष्ट रूप से कहा है कि एसपी ने हथियार बरामदगी के लिए कोई प्रयास नहीं किया। सूत्रों के अनुसार डीआईजी श्री पांडेय अपने पर्यवेक्षण में पूर्व के पर्यवेक्षण एवं अनुसंधान की गंभीर खामियों के अलावा पूर्व के कुछ पत्रों का भी हवाला देने वाले हैं। इसमें एडीजी मनोज नाथ का एक पत्र है। यह पत्र घटना से कुछ ही दिन पूर्व बीएमपी-6 के डीआईजी एवं समादेष्टा को लिखा गया था। पत्र में बीएमपी कोत के हथियारों का गैर कानूनी एवं राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में इस्तेमाल की आशंका जतायी गयी थी। श्री नाथ ने कोत का नियमित निरीक्षण का निर्देश भी दिया था। बावजूद किसी भी वरीय अधिकारी द्वारा कोत का निरीक्षण नहीं किया गया।